यूनानो मिस्र रोमां सब मिट गये जहां से,
अब तक मगर है बाकी नामों निशां हमारा।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमां हमारा।
आज के ये तराना ए हिंद बरबस ही याद आ जाता है। ये देश जहां विविधता बसती है, भाईचारे और एकता में। भारत की आत्मा ही इस सबरसता में बसी है, जिससे ये जिंदा है। पर आज का निज़ाम तो एकरसता का फरमान जारी कर रहा है। शायद अनेक बातों के अलावा इस तराना ए हिंद को फिर से जोर जोर से गाने की जरूरत है। बहुत से लोग इस से पूरे सहमत नहीं रहे कोई तो सिर्फ इस कारण से कि इसे अल्लामा इक़बाल ने रचा था, कुछ अन्य बातों से पर आज इसे गूंजना ही होगा।
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलिस्ताँ हमारा (गुलिस्ताँ=बाग)
ग़ुर्बत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में (ग़ुर्बत=विदेश)
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा
परबत वह सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का ( पासबाँ = रक्षक)
वह संतरी हमारा, वह पासबाँ हमारा
गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिनके दम से रश्क-ए-जनाँ हमारा (रश्क-ए-जनाँ = स्वर्ग के लिये ईर्ष्या)
ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वह दिन हैं याद तुझको?(आब-ए-रूद-ए-गंगा=गंगा का बहता जल)
उतरा तिरे किनारे जब कारवाँ हमारा
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोसिताँ हमारा (हिन्दी = भारतीय)
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा सब मिट गए जहाँ से (यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा= यूनान मिस्र रोम)
अब तक मगर है बाक़ी नाम-व-निशाँ हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा
इक़बाल! कोई महरम अपना नहीं जहाँ में (महरम= परिचित)
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा! (दर्द-ए-निहाँ= छुपा दर्द)
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