यह सरकार वास्तव में सावरकर की ही अनुयाई है।
जहां सावरकर ने अंग्रेजी सितम से डरकर घुटने टेक माफी मांगी थी वही यह सरकार जनता की आवाज़ से डरकर छुप कर बैठ
गई है। आज दिल्ली में होने वाले दो बड़े प्रदर्शनों पर सरकार की भूमिका ने इस बात को रेखांकित कर दिया।
हालांकि दिल्ली में तो पहले ही कई जगह आवाजाही पर रोक लगाई हुई थी मेट्रो स्टेशन बंद किए हुए थे और पुलिस बल तैनात
किया गया था। पर आज तो हद ही हो गई। लगभग 20 मेट्रो स्टेशन जो दो प्रदर्शनों के स्थान मंडी हाउस और
लाल किले के पास के जुलूस के पहुंचने की जगह शहीद भगत सिंह पार्क और पटेल चौक और इसके अलावा
दिल्ली के 3 बड़े विश्वविद्यालयों दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी और जामिया मिलिया इस्लामिया के
आसपास के मेट्रो स्टेशन भी बंद कर दिए गए थे।
बसों को लाल किले के आस पास रुकने नहीं दिया जा रहा था ।उसके बावजूद हजारों की तादाद में लोग धीरे-धीरे पहुंचे तो
उन्हें भारी बंदोबस्त के चलते आगे नहीं पहुंचने दिया गया और हजारों लोगों को अलग-अलग थानों में ले जाकर या जगह से
कुछ दूर जाकर छोड़ दिया गया। इसके बावजूद लोगों ने फिर जंतर मंतर का रुख किया और वहां पर इकट्ठा हो गए।
उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में तो इस वीर सरकार ने धारा 144 पूरे प्रदेश में लगा ही दी ।
यह दिखाता है कि सरकार के पास जनता को जवाब देने के लिए कुछ नहीं है, वह जनता से ख़ौफ़ खाती है ,
जनता के जनवादी विरोध प्रतिरोध को भी वह दबाना चाहती है ताकि दिखा सके यह कोई विरोध नहीं है पर वह नहीं जानती
कि जितना दमन होगा उतना ही गुस्सा भी आएगा।
आज का समय फासीवादी हमले की तेजी और जनता के बढ़ते प्रतिरोध के बीच के संघर्ष का है।
समय की चुनौती को स्वीकार करके जनता को प्रतिरोध को तेज करना ही होगा
जनता के जनवादी विरोध प्रतिरोध को भी वह दबाना चाहती है ताकि दिखा सके यह कोई विरोध नहीं है पर वह नहीं जानती
कि जितना दमन होगा उतना ही गुस्सा भी आएगा।
आज का समय फासीवादी हमले की तेजी और जनता के बढ़ते प्रतिरोध के बीच के संघर्ष का है।
समय की चुनौती को स्वीकार करके जनता को प्रतिरोध को तेज करना ही होगा
No comments:
Post a Comment