Wednesday 19 August 2015

कौन आजाद हुआ

नीचे दिया लेख बरसों पहले 'जवाब" पत्रिका में छपा था। कुछ वर्तनी गलतियां हैं जो unicode में परिवर्तन से आयीं हैं।

हमें 15 अगस्त 1947 केा बताया गया कि भारत अब आजाद मुल्क है। पर लाल किले पर युनियन जैक (इग्लैंड के झण्डे) के अतिरिक्त क्या बदला? भारत के गर्वनर जनरल अब गोरे न रह कर सी0 राजगोपालाचार्य हो गये। पर भारत पर निर्देशन व्यवस्था क्या रही? भारत को इस मुकाम पर कौन लाया। इस ‘आजादी‘ के नेताओं के बयान इस ‘जंगे आजादी‘ के दौरान देखे जा सकते है। कुछ चुनिंदा बयानो को हम छाप रहें है। इन्हें पढ़कर आदोलन की इस धारा की दिशा का अंदाजा हम सहज ही लगा सकते है।
कांग्रेस गान
‘‘मतभेदों और आपसी फूट से
भारत नष्ट हो गया था,
उस भारत की प्राचीन समृद्धि
पुनः लौटा दी गयी
भारत का विकास किया गया
विशाल उद्योग लगाने से
इग्लैण्ड की मदद से
तुम्हारे धन के सहयोग से
ऐसे सम्राट एडवर्ड की शान
का सूरज पूरे विश्व में चमकता रहे’’
(‘एंसाइक्लोपीडिया आॅफ इण्डियन नेशनल कांग्रेस‘ खण्ड 4, पृष्ठ 589)
‘‘इस कथन में दो राय नहीं है कि अंग्रेजों के शासन में अंग्रेजों की मदद और सहानुभूति से उनकी उच्चस्तरीय भावनाओं के साथ हमें अपना उद्देश्य प्राप्त करना है।’’
(‘तिलक- हिज राइटिंग्स एण्ड स्पीचेज‘, पृष्ठ 108)
‘‘हम कुएं के मेढक की तरह पूर्ण स्वतंत्रा देश नही चाहते। हम बराबरी की शर्तों पर भारत ब्रिटेन की मित्राता को सदा के लिए कायम रखना चाहते है।’’ -महात्मा गांधी
(‘बापू‘- खण्ड 3, पृष्ठ 269, लेखक जी.डी. बिड़ला)
‘‘अहिंसा के नियमों में सरकार को परेशानी में डाल कर फायदा उठाने का कोई भी कार्यक्रम नहीं है’’
(‘सम्पूर्ण गांधी वाग्मय‘, खण्ड 21, पृष्ठ 168)
‘‘मैं पूरी तरह सहमत हॅंू कि यूनियन जैक मुर्दाबाद (यानी ब्रिटिश झण्डा मुर्दाबाद) के नारे मेें हिंसा की गन्ध है’’
(‘सम्पूर्ण गांधी वाग्मय‘, खण्ड 43, पृष्ठ 17)
‘‘मैं यूनियन जैक मुर्दाबाद नारे का विरोध करता हूॅं जिसका अब कांग्रेस उद्घोष नहीं करती।’’
(‘नेहरू चयनित रचनायें‘, खण्ड 55, पृष्ठ 285)
‘‘आज के मेरे स्वराज में सिपाहियों की जरूरत होगी। अतः मेरा मानना है कि अहिंसा सिर्फ भारत की आजादी प्राप्त करने के उद्देश्य तक ही सीमित है।’’
(‘सम्पूर्ण गांधी वाग्मय‘, खण्ड 27, पृष्ठ 52)
‘‘(अंग्रेजी सरकार के) आदेशों  का पालन न करने के अपराध में पकड़े गए सैनिक और सिपाही आम माफी नहीं पायेंगे।’’
(‘सम्पूर्ण गांधी वाग्मय‘, खण्ड 45, पृष्ठ 463)
जलियंा वाला बाग पर गांधी
‘‘मेरी तरह हर भारतीय को इस हत्या पर लज्जा अनुभव करनी चाहिये और उसे इस बात की खुशी होनी चाहिए कि अन्य तीन प्रतिष्ठित अंग्रेजों की जाने बच गयी।’’
(‘सम्पूर्ण गांधी वाग्मय‘, खण्ड 71, पृष्ठ 391)
‘‘अगर हम सर्तक नहीं रहे तो ना केवल हमें भारत को एक जन गृह युद्ध के हवाले करना पड़ेगा (हिन्दू मुस्लिम) बल्कि एक निश्चित व पूर्ण चरित्रा वाले राजनैतिक आन्दोलन के हवाले करना पड़ सकता है।’’
(ब्रिटिश प्रधानमंत्राी एटली, 18दिसम्बर, 1946)
‘‘कांग्रेस राजकीय शासन की शत्राु नहीं है बल्कि उल्टे यह उन्हें और उनके मातहत जनता को समृद्धि संतोष व खुशहाली की शुभकामना देती है।’’
(सरदार पटेल, 5जुलाई, 1947)
इन्ही के साथ-साथ एक और धारा थी जिसमें भगत सिंह, बिस्मिल, चन्द्रशेखर आजाद जैसे लोग शामिल थे। इनके चुनिंदा बयानो को भी पढि़ये।
‘‘इसके बाद हमने इस कार्य का दण्ड भोगने के लिए अपने आपको जान-बूझकर पुलिस के हाथों समर्पित कर दिया। हम साम्राज्यवादी शोषकों को यह बतला देना चाहते थे कि मुट्ठी-भर आदमियों को मारकर किसी आदर्श को समाप्त नहीं किया जा सकता और न ही दो नगण्य व्यक्तियों को कुचलकर राष्ट्र को दबाया जा सकता है। हम इतिहास के इस सबक पर जोर देना चाहते थे कि परिचय-पत्रा या परिचय-चिह्न तथा बैस्टाइल (फ्रंास की कुख्यात जेल जहँा राजनैतिक बन्दियों को घोर यन्त्राणाएँ दी जाती थीं। फ्रंास के क्रान्तिकारी आन्दोलन को कुचलने में समर्थ नहीं हुए थे, फँासी के फन्दे और साइबेरिया की खाने रूसी क्रान्ति की आग को बुझा नहीं पायी थी। तो फिर क्या अध्यादेश और सेफ्टी बिल्स भारत में आजादी की लौ को बुझा सकेंगे? षड्यन्त्रों का पता लगाकर या गढ़े हुए षड्यन्त्रों द्वारा नौजवानो को सजा देकर या एक महान आदर्श के स्वप्न से प्रेरित नवयुवकों को जेलों में ठूँसकर क्या क्रान्ति का अभियान रोका जा सकता है? हँा, सामयिक चेतावनी से, बशर्ते कि उसकी उपेक्षा न की जाये, लोगों की जानें बचायी जा सकती हैं और व्यर्थ की मुसीबतों से उनकी रक्षा की जा सकती है। आगाही देने का यह भार अपने ऊपर लेकर हमने अपना कर्तव्य पूरा किया है।’’
‘‘क्रान्ति से हमारा अभिप्राय है-अन्याय पर आधारित मौजूदा समाज-व्यवस्था में आमूल परिवर्तन।’’
‘‘क्रान्ति मानवजाति का जन्मजात अधिकार है जिसका अपहरण नहीं किया जा सकता। स्वतन्त्राता प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। श्रमिक वर्ग ही समाज का वास्तविक पोषक हैश् जनता की सर्वोपरि सत्ता की स्थापना श्रमिक वर्ग का अन्तिम लक्ष्य है। इन आदर्शो के लिए और इस विश्वास के लिए हमें जो भी दण्ड दिया जायेगा, हम उसका सहर्ष स्वागत करेंगे।’’
(तीनों ‘बम काण्ड में सेशन कोर्ट में बयान‘ से 6 जून, 1929)
‘‘भारत साम्राज्यवाद के जुए के नीचे पिस रहा है। इसमें करोड़ों लोग आज अज्ञानता और गरीबी के शिकार हो रहे है। भारत की बहुत बड़ी जनसंख्या जो मजदूरों और किसानो की है, उनको विदेशी दबाव एवं आर्थिक लूट ने पस्त कर दिया है। भारत के मेहनतकश वर्ग की हालत आज बहुत गम्भीर है। उसके सामने दोहरा खतरा है-विदेशी पूँजीवाद का एक तरफ से और भारतीय पूँजीवाद के धोखे भरे हमले का दूसरी तरफ से खतरा है। भारतीय पूँजीवाद विदेशी पूँजी के साथ हर रोज बहुत-से गठजोड़ कर रहा है। कुछ राजनैतिक नेताओं का डोमिनियन (प्रभुतासम्पन्न) का रूप स्वीकार करना ही हवा के इसी रूख को स्वष्ट करता है।’’
(‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियशन के घोषणा पत्रा‘ से)
‘‘हमें समझ नहीं आता कि देश में सरकार ने जो विभिन्न वैधानिक सुधार किये, गाँधी जी उनमें हमें क्यों उलझाते हैं? उन्होंनें मार्लोमिण्टो रिफार्म, माण्टेग्यू रिफार्म, या ऐसे ही अन्य सुधारों की न तो कभी परवाह की और न ही उनके लिए आन्दोलन किया। ब्रिटिश सरकार ने तो यह टुकड़े वैधानिक आन्दोलकारियों के सामने फेंके थे, जिससे उन्हें उचित मार्ग पर चलने से पथ भ्रष्ट किया जा सके। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें तो यह घूस दी थी, जिससे वे क्रान्तिकारियों को समूल नष्ट करने की उनकी नीति के साथ सहयोग करें।’’
‘‘वास्तविक क्रान्तिकारी सेनाएँ तो गाँवों और कारखानों में हैं-किसान और मजदूर। लेकिन हमारे ‘बुर्जुआ‘ नेताओं ने उन्हें साथ लेने की हिम्मत नहीं है, न ही वे ऐसी हिम्मत कर सकते है। यह सोये हुए सिंह यदि एक बार गहरी नींद से जग गये तो वे हमारे नेताओं की लक्ष्य-पूर्ति के बाद ही रूकनेवाले नहीं हैं। 1920 में अहमदाबाद के मजदूरों के साथ अपने प्रथम अनुभव के बाद महात्मा गाँधी ने कहा था, ‘हमें मजदूरों के साथ साँठ-गाँठ नहीं करनी चाहिए। कारखानों के सर्वहारा वर्ग का राजनीतिक हितों के इस्तेमाल करना खतरनाक है। (मई, 1931 के ‘दि टाइम्स‘ से)’’
‘‘वे साफ-साफ पूछेंगें कि उन्हे आपकी क्रान्ति से क्या लाभ होगा, वह क्रान्ति जिसके लिए आप उनसे बलिदान की माँग कर रहे है। भारत सरकार का प्रमुख लार्ड रीडिंग की जगह यदि सर पुरूषोत्तमदास ठाकुरदास हो तो उन्हें (जनता की) इससे क्या फर्क पड़ता है। एक किसान को इससे क्या फर्क पड़ेगा, यदि लार्ड इरविन की जगह सर तेज बहादुर सप्रूआ जायें। राष्ट्रीय भावनाओं की अपील बिल्कुल बेकार है। उसे आप अपने काम के लिए ‘इस्तेमाल‘ नहीं कर सकते।’’
(तीनों ‘बम का दर्शन‘ से 26जनवरी, 1930)
‘‘क्रान्ति से हमारा क्या आशय है, यह स्पष्ट है। इस शताब्दी में इसका सिर्फ एक ही अर्थ हो सकता है- जनता के लिए जनता का राजनीतिक शक्ति हासिल करना। वास्तव में यही है ‘क्रान्ति‘, बाकि सभी विद्रोह तो सिर्फ मालिकों के परिवर्तन द्वारा पूँजीवादी सड़ँाध को ही आगे बढाते है।’’
‘‘साम्राज्यवादियों को गद्दी से उतारने के लिए भारत का एकमात्रा हथियार श्रमिक क्रान्ति है। कोई और चीज इस उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकती।’’
(दोनो ‘ंक्रंातिकारी कार्यक्रम का मसौदा‘ से, 1931)
इसी सब से यह स्पष्ट है कि आजादी की लड़ाई की दो धंाराऐं थी। एक पंूजीपति जमीदार वर्ग के प्रतिनिधियां की धारा जिसकी मुख्य पार्टियंा थी, काग्रेंस-मुस्लिम लीग जिसने अंततः दलालो की भूमिका स्वीकार की और आजादी के नाम पर केवल कुछ रियायतें और अपना आका चुनने की आजादी। अर्थात् अब यह आजादी कि हम यह तय कर सके कि अब हमें लूटने वाला इंग्लैड ही रहेगा या अब अमरीका, रूस, जापान, जमर्नी आदि भी हो सकते है। भारत में विदेशी पूंजी का नियंत्राण व दिग्दर्शन तब भी था। यह सारणी से स्पष्ट है। साथ ही साथ भारत के प्रथम
प्रधानमंत्राी जवाहर लाल नेहरू का यह बयान आज के अटल / नरसिम्हा / देवेगौड़ा या मनमोहन /चिदम्वरम् / यशवंतसिंहा का सा ही लगता है। साथ ही अन्य नेताओं का बयान भी पठनीय है।
‘‘विदेशी पूंजी के हितों के संबन्ध में सारकार कोई एक अवरोध या शर्ते नहीं रखना चाहती जो भारतीय निवेशकों पर लागू न होते हों। सरकार ऐसी नीति बनायेगी जो भारत में विदेशी पूंजी निवेश को बढ़ावा देगी और जिसकी शर्तें दोनों पक्षों के लिए लाभदायक होंगी।’’
‘‘उसके (अमरीका के) एशिया में सर्वोत्तम मित्र समाजवादी है।’’
(राम मनोहर लोहिया 1959)
मार्च 1951 में ‘सांस्कृति स्वतन्त्राता के लिये भारतीय कांग्रेस का आयोजन किया जिसमें अमरीका का खुला सहयोग था। इसे जयप्रकाश नारायण और अशोक मेहता जैसे समाजवादी नेताओं ने आयोजन किया’।
1953 में विदेषी पूंजी द्वारा नियंत्रण
मद    प्रतिषत नियंत्रण   
पेट्रोलियम    93
रबर फैक्ट्रियं    93
हल्के रेलवे    90
माचिस    90
जूट    89
चाय    86
कोयला    62
खनिज    73

रबर का उत्पादन
व वितरण    52
बैंक व वित्तीय संस्थान    46
विद्युत उद्योग    43
इंजीनियरींग उद्योग    33
काफी उत्पादन    37
खाद्य उद्योग    32
कागज/गत्ता    28
चीनी    29
कपास    21
सीमेंट      5
यह आजादी ऐसी आजादी थी जिसमें कुछ भी नहीं बदला। यह पुलिस जो आप पर इसलिये लाठी चार्ज करती थी कि आप देश की आजादी मांग रहें हैं, रातों-रात देश की कानून की रखवाली बन गई। अंग्रेजो के चाटुकार सेना व आई0 र्सी0 एर्स0 अफसर जो अंग्रेजो के हुक्म बजाते थे और देशवासियों पर कहर व जुल्म के वाहक थे, अचानक नेहरू गंाधी के जादुई छड़ी से देशभक्त हो गये। बस आई0 सी0 एस0 नाम बदलकर आई0 ए0 एस0 कर दिया गया। आज भी सेना गर्व से ब्रिटिश साम्राज्य के रक्षा में किये गये युद्धो और पुरूस्कारों को गर्व से गिनती है। यहँा तक कि देश का कानून भी नहीं बदला। जनता भी यू हीं पिसती रही। शायर फैज की नज्म सुबह आजादी ( अगस्त, 47) इस पर सटीक टिप्पणी करती है।

ये दाग़ - दाग़ उजाला1, ये शबगज़ीदा‘ सहर2
वो इन्तिजार था जिसका ये वो सहर3 तो नहीं।
ये वो सहर तो नहीं जिसकी आऱजू लेकर
चले थे यार के मिल जायगी कहीं न कहीं।
फ़लक4 के दश्त5 में तारो की आखिरी मंजिल
कही तो होगा शबे6-सुस्तमौज का साहिल7 
कहीं तो जाके रूकेगा सफ़ीनए ग़में  दिल8
जवँा लहू की पुर असरार9 शाहराहों10 से
चले जो यार तो दामन पे कितने हाथ पड़े
दयारे हुस्न11 की बे सब्र ख़्वाबगाहों12 से
पुकारती रहीं बँाहें, बदन बुलाते रहे
बहुत अजीज13 थी लेकिन रूखे़-सहर14 की लगन
बहुत करी15 था हसीनाने नूर16 का दामन
सुबुक सुबुक थी तमन्ना दबी-दबी थी थकन
सुना है हो भी चुका है फि़राके-जुल्मते-नूर17
सुना है हो चुका है विसाले-मंजिलो-गाम18
बदल चुका है बहुत अहले-दर्द का दस्तूर
निशाते-वस्ल हलालो-अज़ाबे-हिज्रे-हराम19
जिगर की आग, नज़र की उमंग, दिल की जलन
किसी पे चारःए-हिजँ्रा20 का कुछ असर ही नहीं
कहँा से आई निगारे-सबा21 किधर को गई
अभी चिरागे-सरे-रह22 को कुछ ख़बर ही नहीं
अभी गरानी-ए-शब23 में कमी नहीं आई
नजाते-दीदः-ओ-दिल की घड़ी नहीं आई
चले चलो कि वह मंजिल अभी नहीं आई

कवि रबिन्द्र नाथ टैगौर ने जो गीत जार्ज पचंम के स्वागत् हेतु लिखा गया था, वह राष्ट्रगान बन गया। कवि रघुवीर सहाय कि यह कविता पढि़ये:-

राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है।
मख़मल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्रा चंवर के साथ
तोप छुड़ाकार ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता हैं।
पूरब-पच्छिम से आते है।
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा, उनके
तमगे कौन लगाता हैं।
कौन-कौन है वह जन-गण-मन।
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज़ बजाता है।

दरअसल यह सवाल महत्वपूर्ण है कि आज आजाद है कौन? क्या हम आजाद है? आज बेरोजगारी, मंहगाई, दमन, अशिक्षा के चक्कों में पिसता आम नौजवान कहँा से आजाद हैं? आजादी का फल भोगा है टाटा, बिड़ला ने इनकी हजारो-हजारो गुना बढ़ गई है। आजाद है पैप्सी, कोक, जो कैसे भी पानी हो मनमाने दाम पर बेच रहें है। आजाद है आज बहुराष्ट्रीय कम्पिनयंा भारत के सस्ते श्रम, संसाधन व बाजार को लूटने को। आजाद है आज दलाल पूंजीपति जो विकास के नाम पर जन मजदूर विरोधी विधान की वकालत कर रहे हैं।
आईये इस आजादी के चरित्रा को पहचाने। इस झूठी आजादी का नकार कर जनता की असली आजादी की लिये लामबंद हों, संघर्ष बुलन्द करें।