Thursday 19 December 2019

सावरकर की कायर सरकार

 यह सरकार वास्तव में  सावरकर की ही अनुयाई है। 
जहां सावरकर ने अंग्रेजी सितम से डरकर घुटने टेक माफी मांगी थी वही यह सरकार जनता की आवाज़ से डरकर छुप कर बैठ
गई है।  आज दिल्ली में होने वाले दो बड़े प्रदर्शनों पर सरकार की भूमिका ने इस बात को रेखांकित कर दिया।
हालांकि दिल्ली में तो पहले ही कई जगह आवाजाही पर रोक लगाई हुई थी मेट्रो स्टेशन बंद किए हुए थे और पुलिस बल तैनात
किया गया था।  पर आज तो हद ही हो गई। लगभग 20 मेट्रो स्टेशन जो दो प्रदर्शनों के स्थान मंडी हाउस और
लाल किले के पास के जुलूस के पहुंचने की जगह शहीद भगत सिंह पार्क और पटेल चौक और इसके अलावा
दिल्ली के 3 बड़े विश्वविद्यालयों दिल्ली विश्वविद्यालय,  जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी और जामिया मिलिया इस्लामिया के
आसपास के मेट्रो स्टेशन भी बंद कर दिए गए थे।
बसों को लाल किले के आस पास रुकने नहीं दिया जा रहा था ।उसके बावजूद हजारों की तादाद में लोग धीरे-धीरे पहुंचे तो
उन्हें भारी बंदोबस्त के चलते आगे नहीं पहुंचने दिया गया और हजारों लोगों को अलग-अलग थानों में ले जाकर या जगह से
कुछ दूर जाकर छोड़ दिया गया।  इसके बावजूद लोगों ने फिर जंतर मंतर का रुख किया और वहां पर इकट्ठा हो गए।
उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में तो इस वीर सरकार ने धारा 144 पूरे प्रदेश में लगा ही दी । 

 यह दिखाता है कि सरकार के पास जनता को जवाब देने के लिए कुछ नहीं है,  वह जनता से ख़ौफ़ खाती है ,
जनता के जनवादी विरोध प्रतिरोध को भी वह दबाना चाहती है ताकि दिखा सके यह कोई विरोध नहीं है पर  वह नहीं जानती
कि जितना दमन होगा उतना ही गुस्सा भी आएगा।
आज का समय फासीवादी हमले की तेजी और जनता के बढ़ते प्रतिरोध के बीच के संघर्ष का है।
  समय की चुनौती को स्वीकार करके जनता को प्रतिरोध को तेज करना ही होगा 

Saturday 14 December 2019

भारत की आत्मा और हस्ती

यूनानो मिस्र रोमां सब मिट गये जहां से,

अब तक मगर है बाकी नामों निशां हमारा।


कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,

सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमां हमारा।



आज के ये तराना ए हिंद बरबस ही याद आ जाता है। ये देश जहां विविधता बसती है, भाईचारे और एकता में। भारत की आत्मा ही इस सबरसता में बसी है, जिससे ये जिंदा है। पर आज का निज़ाम तो एकरसता का फरमान जारी कर रहा है। शायद अनेक बातों के अलावा इस तराना ए हिंद को फिर से जोर जोर से गाने की जरूरत है। बहुत से लोग इस से पूरे सहमत नहीं रहे कोई तो सिर्फ इस कारण से कि इसे अल्लामा इक़बाल ने रचा था, कुछ अन्य बातों से पर आज इसे गूंजना ही होगा। 


सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलिस्ताँ हमारा (गुलिस्ताँ=बाग)

ग़ुर्बत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में (ग़ुर्बत=विदेश)
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा

परबत वह सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का ( पासबाँ = रक्षक)
वह संतरी हमारा, वह पासबाँ हमारा

गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिनके दम से रश्क-ए-जनाँ हमारा (रश्क-ए-जनाँ = स्वर्ग के लिये ईर्ष्या)

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वह दिन हैं याद तुझको?(आब-ए-रूद-ए-गंगा=गंगा का बहता जल)
उतरा तिरे किनारे जब कारवाँ हमारा

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोसिताँ हमारा (हिन्दी = भारतीय)

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा सब मिट गए जहाँ से (यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा= यूनान मिस्र रोम)
अब तक मगर है बाक़ी नाम-व-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा

इक़बाल! कोई महरम अपना नहीं जहाँ में (महरम= परिचित)

मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा! (दर्द-ए-निहाँ= छुपा दर्द)