Friday 29 November 2019

कुछ जे एन यू जे बारे में...

हाल ही में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में फीस बढ़ोतरी को लेकर एक आंदोलन  चल रहा है। इसके बारे में कुछ एकदम नौजवान बच्चों से बातचीत हुई जिन्हें जे एन यू को लेकर बहुत भ्रांति थी और वह मीडिया के उस गलत प्रचार के शिकार थे कि जेएनयू में सब कुछ गलत ही होता है।  उस समय समय नहीं था और बाद में मेरे पास टाइप करने का समय नहीं था उनसे बात हुई थी कि जेएनयू की उस घटना के बारे में डिस्कस करेंगे जिसने जेएनयू को देशद्रोही का टैग दिया। बहुत संक्षेप में कुछ बातें मैंने लिखी है। 
 जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की घटना
9 फरवरी 2016 को सुप्रसिद्ध जे॰एन॰यू॰ घटना घटी। आर॰एस॰एस॰ के जाने परखे तरीके- झूठा प्रचार, इसे फैलाने के लिये तैयार मशीनरी, तथ्यों व तर्कों को छुपाने के लिये उन्माद की धुंद बनाना- पूरे जोरों पर थे। ऐसा माहौल बनाया जाने लगा कि मानो जे॰एन॰यू॰ ‘राष्ट्र विरोधियों’ का अड्डा है और इसे बंद कर देना चाहिये। जिन लोगों ने कथित तौर पर भारत विरोधी नारे लगाये थे वे न तो आज तक पकड़े गये और न ही पकड़ने की कोशिश की गई। पर वामपंथी संगठनों के प्रमुख नेताओं और जे॰एन॰यू॰ छात्र संघ (जुनुसु) के पदाधिकारियों को ज़रूर पकड़ लिया गया। ए॰बी॰वी॰पी॰ के गुंडे, जिन्होंने अपने वरिष्ठ नेताओं के साथ इस उन्माद की योजना बनाई थी, अब पूरे जोर शोर से सक्रिय हो गये। एक सांसद महेश गिरि प्रकट होते हैं और राजद्रोह का मुकदमा दर्ज होता है। हांलाकि कोई सबूत नहीं था। ज़ी न्यूज़ में दिखाया गया वीडीओ, जो इस शिकायत का मुख्य आधार था छेड़छाड़ के साथ बनाया हुआ पाया गया। जे॰एन॰यू॰ के साथ आर॰एस॰एस॰ भाजपा ने वामपंथ पर ही हमला बोल दिया। सबूतों के अभाव में आरोपियों को कोर्ट ने जमानत दे दी। इस हमले का मुकाबला करने के लिये देश भर में जनवादी व देश भक्त लोगों ने जबर्दस्त विरोध किया। दिल्ली व देश के अन्य भाग में बड़े बड़े विरोध प्रदर्शन आयोजित किये गये, जिनमें हजारों लोगों ने भाग लिया।
 कुछ विस्तार से
डीएसयू के  से अलग हुए एक टुकड़े ने  अफजल गुरु की बरसी पर एक कार्यक्रम की घोषणा की|  जिसके पोस्टर भी लगाए गए और प्रचार भी किया गया| यह कोई अनहोनी बात नहीं थी|  अफजल गुरु की फाँसी के बाद से हर साल इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं |  पर इस बार कुछ और ही घटित होने वाला था| कार्यक्रम के लगभग आधा घंटा पहले आयोजकों को सूचित किया गया कि उनकी परमिशन कैंसिल हो गई है |जाहिर बात है अंतिम समय में ऐसे करने से छात्र कार्यक्रम करेंगे ही और इस बात का पूर्वानुमान अधिकारियों और एबीवीपी को था। अतः वह पूरी तैयारी से आए थे। कार्यक्रम शुरू हुआ और उसमें कुछ  नकाबपोशों ने वह नारेबाज़ी की जो स्पष्ट था भारत विरोधी थी। वे नारे लगा कर चले गए। इसी बात को लेकर एबीवीपी ने हंगामा शुरू किया और आयोजकों के ऊपर हमला किया। यह आयोजक जेएनयूएसयू या किसी अन्य छात्र संगठन से नहीं थे। हंगामे की खबर सुनकर जे एन यू यू के अध्यक्ष कन्हैया कुमार वहां पहुंचे और अनेक संगठनों के नेता भी। बाहरी लोगों के नारेबाज़ी की बात सुनकर कन्हैया ने लोगों के आई कार्ड चेक करने शुरू किए।
 अफ़रा तफ़री में वहां पर सांसद महेश गिरी का आगमन होता है और वह एबीवीपी के लोगों के साथ आने में जाकर कन्हैया कुमार,  यूनियन के पदाधिकारी छात्र संगठनों के नेताओं के नाम भारत विरोधी नारेबाज़ी और राजद्रोह का शिकायत दर्ज करते हैं इनमें कुछ ऐसे नाम  थे जो वहां पर मौजूद ही नहीं थे। अगले दिन ज़ी न्यूज़ एक वीडियो दिखाते हैं जिसमें जेएनयू में पाकिस्तान जिंदाबाद नारे दिखाए जा रहे हैं। बाद में पता चला कि यह नारे तो एबीवीपी के लोगों के मुंह से निकल रहे हैं। इसका पता लगने पर इस वीडियो की और पड़ताल हुई और पता चला कि वहां पर एबीवीपी के लोग एबीवीपी जिंदाबाद नारे लगा रहे थे जिसको बैकग्राउंड में ज़ी न्यूज़ में पाकिस्तान जिंदाबाद कर दिया।   बहरहाल, जैसे कि पूर्व योजना थी इस घटना को इस्तेमाल कर एक उन्माद पैदा किया गया और वातावरण बनाया गया मानो जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में देशद्रोही लोग रहते हैं । संघ का प्रचार तंत्र तुरंत पूरी तेजी से जुड़ गया और देश भर में उन्माद का माहौल पैदा किया गया।
 यहां पर बहुत से प्रश्न हमारे सामने हैं।  एक-एक करके सभी मसलों पर देखते हैं हैं
 पहले अफजल गुरु पर,  अफजल गुरु एक आत्मा समर्पित उग्रवादी था जो बाद में पुलिस का स्पेशल ऑफिसर भी बना।  उसे दिल्ली बुलाया गया और वह पुलिस की मदद के लिए दिल्ली आया। संसद में हमले करने वाले हाथ के हाथ धरे गए और मारे गए। अफजल गुरु के या किसी भी अन्य के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं था। अफजल गुरु के खिलाफ साज़िश करने का आरोप लगाया गया  जिस पर सजा-ए-मौत नहीं होती है । यह उल्लेखनीय है की महात्मा गांधी की हत्या में भी नाथूराम गोडसे को फाँसी हुई पर साज़िश के आरोपी गोपाल गोडसे और सावरकर को नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि हालांकि किसी के खिलाफ भी फाँसी लायक सबूत नहीं है परंतु राष्ट्र की सामूहिक चेतना के हित में इतने बड़े कांड पर किसी को तो सजा होनी चाहिए और क्योंकि सबसे अधिक सबूत अवसर के खिलाफ है उसे फाँसी दी जानी चाहिए।  इस फैसले से किसी की सहमति या असहमति हो सकती है। जो असहमत है उसका विरोध करते हैं, और वह यह भी मानते हैं कि अफजल गुरु आतंकवादी नहीं था क्योंकि उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं था और वह आत्मा समर्पित उग्रवादी था। उनका अफजल गुरु की फाँसी का विरोध करना ना तो देश के खिलाफ है और ना ही आतंकवाद का समर्थन करना है। इसमें अलग-अलग राय हो सकती हैं जो उसे आतंकवादी मानते हैं हो सकता है फाँसी की बात करें लेकिन जो उसे आतंकवादी नहीं मानते उनका फाँसी का विरोध करना आतंकवाद का समर्थन नहीं है। पर  आगे भी देखेंगे कि तथ्यों और तर्कों का कोई अर्थ उन्माद फैलाने वाले लोगों के लिए नहीं है।
 दूसरा प्रश्न जेएनयू की अलग-अलग छात्र संगठनों का है।  डी एस यू और इस तरह के गिने-चुने संगठन मानते हैं कश्मीरियों को आत्म निर्णय का अधिकार है और यह बात उन्हें ही तय करनी चाहिए कि उन्हें भारत में रहना है कि पाकिस्तान में रहना है या स्वतंत्र रहना है इसमें किसी भी प्रकार का दवाब नहीं होना चाहिए।  यह बात विलय के दस्तावेज में भी है कि भारत कश्मीर में रायशुमारी कराएगा। इसमें किसी की भी सहमति और सहमति हो सकती है उस समझौते को लागू कराने के लिए माँगना देश से गद्दारी नहीं कहा जा सकता।
 कन्हैया कुमार वह अन्य लोग  जिस संगठन से हैं जैसे एआईएसएफ,  एसएफआई, आयसा आदि इस बात से इत्तेफ़ाक नहीं रखते वह रायशुमारी की मांग नहीं रखते अतः कन्हैया कुमार जैसे लोगों पर ही आरोप लगाना तो वैसे ही मूर्खतापूर्ण है। 
 कोर्ट में भी दिल्ली पुलिस अभी तक सही सबूत और वीडियो पेश नहीं कर पाई जिससे  सिद्ध होता के कन्हैया कुमार जैसे लोगों ने वहां पर नारेबाज़ी की या अफजल गुरु का समर्थन किया।  दरअसल अगर सरकार चाहती छोटे उस संगठन को पकड़ सकती थी जिन्होंने इस कार्यक्रम का आयोजन किया, मकसद वह नहीं था।  उन्हें तो एक मुद्दा चाहिए था जेएनयू और वामपंथ पर हमला करने का। उन चंद लोगों पकड़ लिया जाता तो शायद यह इतना बड़ा मुद्दा भी नहीं बनता और उनके बचाव में लोग अधिक नहीं आते।  कन्हैया कुमार की संगठन के बड़े लोगों ने शुरू में कोशिश की किस सिर्फ कन्हैया को बचाकर यह दिखा दिया जाए कि उसकी लाइन नहीं है। बाकी लोगों को पुलिस के लिए छोड़ दिया जाए, कन्हैया कुमार नहीं माने क्योंकि वह छात्र संघ के अध्यक्ष थे और उन्होंने कहा जेएनयू के छात्रों की रक्षा करना उनका काम है। 
इसके बाद एक के बाद एक अकादमिक संस्थानों पर हमला बोला गया। तरीका वही था ।उदाहरण के लिए रामजस कॉलेज की घटना वहां पर पॉलिटिक्स ऑफ डिस्टेंस अर्थात असहमति की राजनीति पर एक गोष्ठी रखी गई जिसमें उमर खालिद को वक्ता के तौर पर बुलाया गया।  उसका नाम देखकर एबीवीपी के लोग भड़क उठे और उन्होंने घोषणा की कि गोष्ठी नहीं होने देंगे क्योंकि उनका ख्याल से उमर खालिद एक देशद्रोही है। डर के मारे आयोजकों ने उसका नाम भी हटा दिया और उसका आमंत्रण निरस्त कर दिया। परंतु अब चुप हो जाने से तो मकसद ही खत्म हो जाता क्योंकि मकसद भड़काना था न की उमर खालिद को रोकना।  पूरा हिंसक प्रदर्शन जारी रहा पथराव किया गया और पुलिस का समर्थन रहा। गुंडागर्दी बिना प्रशासन की मर्ज़ी के नहीं होती वह भी मुट्ठी भर लोगों की। इसका प्रतिरोध भी हुआ पर फिर से उन्माद फैला दिया गया। जबकि उमर खालिद वहां था ही नहीं । 
 इसी से जुड़ी एक घटना गुरमेहर कौर की हुई।  इस घटना से आहत गुरमेहर कौर ने एक पोस्टर पकड़ कर अपनी फोटो सोशल मीडिया पर डाली जिसमें उन्होंने कहा था की एबीवीपी से मत डरो।  यह देख कर ये लोग उसके पीछे पड़ गए। 2 साल पुराने 37 स्लाइड वाले एक पोस्ट को उठा लिया। उसमें बताया था कि गुलमोहर कौर के पिता जी भारतीय सेना में थे और युद्ध में मारे गए।  इससे गुलमोहर कौर के दिमाग में पाकिस्तानियों और मुसलमानों के खिलाफ नफरत पैदा हो गई। यहां तक कि उन्हें जब एक बुर्क़ा वाली औरत मिली तो उन्होंने उस पर हमला कर दिया। यह बात  गुरमेहर के बचपन की है। उसकी मां ने उसको समझाया कि उसके पिता को ज़रूर एक पाकिस्तानी और मुस्लिम ने मारा पर इससे सारे मुसलमान और पाकिस्तानी खराब नहीं हो जाते। उन्होंने समझाया उसके पिताजी को युद्ध ने मारा ना कि मुसलमान ने।  इसका अर्थ हुआ के हर मुसलमान के पिताजी का दुश्मन नहीं था यह हमारा दुश्मन नहीं है बल्कि क्योंकि भारत-पाक युद्ध था उसमें पाकिस्तान की ओर से लड़ने वाले मुसलमान ही थे अतः मारने वाला मुसलमान बन गया। सोचने की बात है कि उस युद्ध में भारतीय लोगों ने भी कई पाकिस्तानियों को मारा होगा और शायद अधिक को  ही मारा होगा। तो क्या सारे हिंदू या सारे भारतीय हत्यारे हो जाते हैं। इस स्लाइड शो मैं उनके मां का यह कथन के उसके पिताजी को युद्ध में मारा भी था। इन 37 स्लाइडों मेरे से केवल एक स्लाइड जो उसकी मां का वक्तव्य था उसको बिना किसी संदर्भ और प्रसंग के गुरमेहर के बयान के रूप में प्रचारित करा और  उसे इतना ट्रॉल किया कि अंततः वह सोशल मीडिया से हट गई और गुप्त हो गई।