Wednesday 27 January 2016

रोहित प्रकरण और संघी झूठ --- I


नरेन्द्र मोदी लखनउ में रो पड़े। जिसे संघ ने देश द्रोही कहा उसे वो माँ भारती का लाल कहने लगे। झूठ बोलना तो संघियों की छठी में ही पुजा होता है। ये बिन शर्म अनेक रंग के हो सकते हैं और जोर दार तरीके से। ऐसा नहीं कि बाकी दूध के धुले हैं पर इनका अत्मविश्वास व निर्लज्जता , व पूरे जोर से पिछलग्गुओं का उसे सही ठहराने में जुट जाना इनका खास चरित्र है।
अभी रोहित के मुद्दे पर ही बात करे। झूठ और नाटक का अनूठा उदाहरण दिखाई देता है। पहले म्सइ ने कहा कि मंत्रालय केन्द्रीय विश्वविद्यालय में दखल नहीं करता, ये उसका आन्तरिक मामला है। फिर एक नहीं, दो नहीं, चार चिट्ठियां सामुअने आयीं तो बोली कि अन्दर जाँच की गयी थी। फिर बोली कि जाँच टीम के सदर दलित थे। बाद में डीन ऑफ स्टुडेन्ट्स वेलफेयर ने इसे झूठला दिया और बताया कि अध्यक्ष ही नही, कोइ भी दलित इस जाँच दल का सदस्य नहीं था। केवल एक दलित प्रोफेसर से राय ली गयी थी। फिर एड्मिशन की लिस्ट में उसका आरक्षण में नाम होने पर उसकी जाति पर सवाल उठाया। पर ये अक्ल के अन्धे नहीं देख पाये कि रोहित जनरल लिस्ट में अव्वल छात्रों में से एक था अतः उसने आरक्षूरण का लाभ नही लिया।
मजे कि बात यह कि श्रम मन्त्री (जो पहले श्रम कानूनो के सवाल पर भी सन्सद में झूठ बोल् चुके हैं) और सिकन्दराबाद के सान्सद ने अपनी चिट्ठी में कहा कि अम्बेडकर स्टूदेन्ट्स असोसियेशन ने ए॰ब॰वी॰पी॰ के अध्यक्ष को पीटा, जबकि विश्वविद्यालय प्रशासन के पास किसि विद्यार्थी के खिलाफ हमलों पर कार्यवाही का अधिकार तो है, पर संगठन के पदाधिकारी पर नहीं। पर (मनु)स्मृति ईरानी ने इसके लिये में 4 चिट्ठी लिखीं। और बेचारा पिटा अध्यक्ष तो अभी तक चोट के निशान भी नही दिखा पाया। एक ऑपरेशन के कागज दिखाता है, जो असपताल के रेकॉर्ड में अपेण्डेसाईटिस के ऑपरेशन का है। इसकी भी सही संघी ट्रेनिंग है।
और महान वाइस चांसलर – (मनु)स्मृति ईरानी के हस्तक्षेप से पहले हुइ जाँच में अम्बेडकर स्टूदेन्ट्स असोसियेशन निर्दोष पाये गये थे और दोनों पक्षों को झाड़ कर आपसी झगड़ों से दूर रहने की सलाह दी गयी थी, और अब कन्टीन्यूइंग इन्क्वाइरी कर दी गयी और इन्हे दोषी पा कर बाहर कर दिया गया! क्या वीसी का अपना कोई रीढ़ नहीं है? मन्त्रालय के तलवे ही उनका धर्म रह गया है? अब जब वो हंगामे से डर छूट्टी पर भाग गया तो श्रीवास्तव जो जाँच दल का अध्यक्ष था, को वीसी का चार्ज दे दिया गया!
और इनके फेसबुकिये    व्हाट्सएपिये गुर्गे पिल गये अपने काम पर। झूठ को सच बनाने को।
ऐसा नही है कि दलितों पर हमले पहले नहीं हुए। सभी पार्टियों  (सामाजिक न्याय का दम भरने वाली लालु की पार्टी समेत) के राज में ऐसा हुआ है, पर अब हर हमले को बेशर्मी और दबंगई से न्यायोचित ठहराया जा रहा है। और मोदी दादरी की भांति पांच छः दिन बाद हल्का सा कुछ बोले, पर घटना की निन्दा की और ही अपनी पार्टी के दोषी मन्त्री/सांसद/नेतायों के ऊपर कुछ बोले।
…….. जारी